महाशिवरात्रि और जल का पौराणिक महत्व एवं अर्थ | निराले रंग | शिव महिमा

 महाशिवरात्रि और जल का पौराणिक महत्व व अर्थ

 महाशिवरात्रि और जल का पौराणिक महत्व एवं अर्थ :-

यदि मानव जीवन स्वस्थ है तो वह महाशिवरात्रि व्रत इसलिए करेगा कि जल से अत्यधिक प्रेम करने वाले भगवान शिव ने महान् अनुकम्पा करके जल को जीवन ( किसी भी जीव का जीवन) का अनिवार्य तत्त्व बना दिया है । बिना जल के धरती पर किसी जीवन की कल्पना तक नहीं  की जा सकती और जल भगवान् की शिव की अनुकम्पा है । 

भगवान शिव  सभी जीवों (पशु) के स्वामी है  इसीलिए भगवान् शिव वेदों-पुराणों में  पशुपति कहे जाते हैं। यह संपूर्ण चराचर जगत और  अखंड ब्रह्माण्ड जल की महत्ता और सत्ता को स्वीकार करता है । 

इस सृष्टि के जन्म से पहले  चारों तरफ़ अथाह जल था और सृप्टि के पालक विष्णु इसी जल में शेषनाग के ऊपर विराजमान थे । पौराणिक मतानुसार सृप्टि रचना के समय देवों के देव महादेव अर्थात् शिव की आज्ञा से ' स्वयं विष्णु ने वराह अवतार लेकर इस पृथ्वी को जल से बहार निकाला और ब्रह्माजी ने इस पर जीवन लीला प्रारंभ की । पृथ्वी की उत्पत्ति जल से हुई कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों का भी ऐसा ही विचार है ।

जल का पौराणिक महत्व व अर्थ

आज भी जल को पूजनीय ओंर पवित्र माना जाता है । भगवान् शिव और जल का गहरा संबंध है । ' महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस संबंध का महत्व और अघिक बढ जाता है । महाशिवरात्रि का वर्ण -विन्यास करने पर इसको म्+ह+ (आ) + श+(इ)+व्:र+आ+त्र+(इ) लिखते हैं। इनका अर्थ क्रमश: म=जल, सुख, समय, विष, चंद्रमा, ब्रहमा, विष्णु, शिव और यम । ह=जल, आकाश, रक्त, शिवजी का एक रूप, शून्य, स्वर्ग, ध्यग्रन, धारण शुभ, भय, झान, चंद्र, विष्णु, आनंद, ब्रहूमा । (आ)= ब्रह्मा, विष्णु शिव, वायु अमृत ( द्रव अर्थात् जल) , विश्व । शू आनद, हर्ष, शिव । ( इ) =क्रोध, दया, क्रिया के रूप में किसी भी प्रकार की गति । व = वरुण,पवन, तुप्टि साधना, निवास, राहु का नाम, बलवान् । ' र + ( आ ) = गर्मी,  प्रेम, अनि, वेग, वर्ण देवता । त्रि का अर्थ '॰ है तीना |  तीन क्री बडी महिमा है। तीन  नेत्र, तीन गुण, तीन लोक, तीन काल,  तीन देव (ब्रह्मा, बिष्णु, महेश), संसार क्री तीन गतियाँ ( रचना, पालन, विनाश), जीबन की स्थितियाँ (बाल, युवा, वृदघृ) । ये सभी भगवान शिव के ही स्वरूप है । त्र्यम्बक भगवान् शिव हैं । इस प्रकार ’ महाशिवरात्रि' का प्रत्येक व्यंजन 'और प्रत्येक मात्रा (स्वर) शिव मय है । शिव भक्त पर कृपा करते हैं द्रवीभूत्त होते हैं अर्थात पिघल कर भक्त का सब भांति शिव (कल्याण) करते हैं । 

शव में इ स्वर लगाने पर शिव बनता है । इ का अर्थ गतिशीलता होता हैं अर्थात् शिव गतिशीलता का पर्याय है । शिव के बिना यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड शव है । उसमें कोई गतिशीलता नहीँ है । इसी प्रकार जो भी गतिशील है, वह निरंतर बहता रहता है । गतिशीलता का अर्थ परिवर्तन होता है और जल को किसी  भी बर्तन में डालने पर वह उस वर्तन के अनुरूप अपना आकार परिवर्तित कर लेता  है ।

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