गलत कर्म का गलत फल -हिन्दी कहानी | निराले रंग

हिंदी कहानी 


एक समय की बात है. एक सेठ था –दिलदार. वह व्यापार करता था. और मिलावट का माल बेचता था. दिलदार ऐसे कामों को सोने की चिड़िया मनाता था. इस तरह वह बहुत धनी बन गया. सेठ नाम से दिलदार था, लेकिन वह दिल का मेला था. वह बाल की खाल निकलता था. उसकी पत्नी का नाम मझधार था. वह सेठ के भांति मक्खी-चूस न थी.
   वह तो चादर देखकर पाँव फैलाती थी. दीन-दुःखी व संतो की सेवा करती थी. लेकिन सेठ यह नही चाहता था. वह ऐसे कामों में एक पैसा न खर्च करता था. यानी चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए.
  मझधार उन्हें बहुत समझती थी. आपके पास प्रभु ने सब कुछ दिया. फिर भी आप लोभ-लालच के गुलाम बने है. आप धर्म युक्त काम करो. दीन-दुखी व संत महात्माओं की सेवा करों.
    जिससे हमारा जीवन सफल होंगा, परन्तु सेठ यह बात हमेशा टालता था. एक दिन सेठ अकेला दुकान पर बैठा था. उस समय पर कोई ग्रहाक न था. सोचने लगा तो मझधार की बात याद आ गयी.
सेठ ने निर्णय किया की “मैंने जीवन में कभी अच्छा काम न किया. आज से, मै बेईमानी का धन्धा नही करूँगा. सच्चाई के राह पर रहूँगा. दीन-दुखी और संतों की सेवा करूँगा. और धर्म के नाम पर कंजूसी न करूंगा.”
  सेठ के मन में ऐसे भाव उठ रहे थे. तभी उधर से एक फ़क़ीर आ रहा था. उसने सोचा अब से ही श्रीगणेश करलू. और वह दौड़ा दौड़ा गया. तथा फ़क़ीर बाबा को सलाम किया. सेठ ने फ़क़ीर से कहा, बाबा चलो मेरी छोटी सी दुकान पवित्र कर दो.
बाबा दुकान पर आ गये. सेठ ने उनका भव्य आदर सत्कार किया. बाबा गद्गद हो गये. बाबा ने कहा- अल्ला तुझे सेठ से सेथ्पति बनाए. और कहा की “तुम सबके साथ ऐसा ही व्यवहार रखना. इसमें एक तिल भर पाप मत रखना. अन्य था जीवन भर रोना पड़ेंगा.”
  सेठ मन ही मन मुस्कराया. बाबा जाने लगे. सेठ कुछ देना चाहता था, परन्तु उन्होंने इनकार कर दिया. सेठ के मन में पुन: कंजूसी के भाव उठे. फिर मझधार की बात याद आ गयी. वह बाबा को देना चाहता था-दस का नकली नोट.
   सेठ ने फ़क़ीर बाबा को हाथ जोड़ा. और दस का नकली नोट बाबा को दिया. बाबा को लाभ नही था. उन्होंने बिना नजर अंदाज कर उसे झोली में रख दिया. और सेठ ने कहा –अल्ला मेरे मौला. जिसने जिस भाव से उद्धार का मार्ग चुना. हे अल्ला इसके ऐसे ही अशुल सफल कर ! इतना कह कर फ़क़ीर बाबा हवा हो गए.
   सेठ काफी वक्त सोचता रहा, अचानक उसकी दृष्टि अखबार पर पड़ी. सेठ ने एक लाटरी  का टिकिट खरीद रखा था. उसी का परिणाम दिखाई दिया.  सेठ ने तत्काल जेब से टिकिट निकला.
  सेठ अपने भाग्य को अजमाने लगा. देखा तो लाटरी का पहला विजेता. उनकी आँखे फटी-फटी सी रहा गयी. वह झूम उठा ! फुले न समाया. फिर कहने लगा “वाह ! मेरे दस करोड़’’, आज मै दस करोड़ का मालिक बन गया.
  सेठ अपना टिकिट लेकर बैंक गया. वहा उसे लाकर में जमा करवा दिया. फिर वह घर गया. उसने मझधार को यह घटना सुनाई. यह सुन मझधार बहुत ही खुश हुए की उन्हें लाटरी लगी.
     प्रात: काल सेठ दुकान पर गया. आज भी ग्राहको की कमी थी. अत: वह सोचने लगा. इतना धन लाटरी से मिला. उसका विभिन्न काम करवाऊंगा.
  एक करोड़ का बुचड खाना बनाने. पांच करोड़ का नकली नोट बनवाने का कारखाना . डेढ़ करोड़ की तस्करी व अवैध माल का धंधा. बाकी विदेश की बैंक में रहेंगा.
 यह सोच रहा था. तभी अचानक हवा का झोका आया और आज का अखबार उड़ता उड़ता आया और सेठ की ललाट पर लपक गया.
  सेठ की कल्पना भंग हो गयी. वह उसे लेकर पढ़ने लगा. कापी देर अखबार पढ़ने के बाद, वह अचानक चौक गया. वह ध्यान मगन हो कर एक विज्ञप्ति पढ़ने लगा. उसने देखा बाक्स में लिखा भूल सुधार .
सेठ ने ध्यान से देखा तो उसी लाटरी का संशोधन था. सेठ के दस करोड़ का मालिक कोई और बन गया. सेठ का सिर चक्करा गया. वह सिर पकड़ कर रोने लगा.
  तभी उधर पुलिस की गाडी आ गयी, और सेठ को गिरफ्तार कर लिया. गाडी थाने पहुंची. सेठ ने थाने में देखा, तो वो फ़क़ीर बाबा सामने खड़े थे.
बाबा को देख कर –वह भौसक्का रह गया. पुलिस ने नकली नोट बाबा को देने, वह इसका धंधा करने के आरोप में उसे पकड़ा था.
बाबा ने कहा –तुजे माफ़ करना और राष्ट्र को खड्डे में डालना एक सामान हैं. मेरे पास यह दस का नकली नोट, यह सिद्ध करता है की तुम राष्ट्र का कलंक व देश द्रोही हो. इसलिए तुझे पकड़ना मेरा फर्ज है. अत: अब जेल की चक्की पीसो और जेल की हवा खाओ.   
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