गणेशजी की कथा- गणेश चतुर्थी विशेष कथा
एक अंधी गरीब बढिया माई हमेशा गणेश की पूजा करती थी। उसके एक बेटा एवं बहू थी। गणेश जी उसकी पूजा पाठ से बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने बुढ़िया को कहा- 'बुढिया माई मांग क्या मांगना चाहती है?' बुढ़िया बोली 'भगवान मुझे तो कुछ मांगना नहीं आता आप ही बताएं क्या मांगू?' तब गणेश जी बोले 'अपने बेटे-बह से पूछ ले।
बुढ़िया ने बहू से पूछा तो वह बोली- 'सासूजी, पोता मांगना तुम्हारी अंगुली पकड़ कर चलेगा।'
बेटे से पूछा तो वह बोला- 'मां. धन मांगना बैठे-बैठे खाएंगे।'
बेटे एवं बहू की बातों ने बुढ़िया को भ्रमित कर दिया। इसी चिंता में बुढिया रातभर विचार करती रही। दूसरे दिन गणेश जी एक बूढे के रूप में बुढ़िया से मिले और उन्होंने उससे पूछा कि बुढ़िया क्यों बड़बड़ा रही है? तब वह बोली- देखो आज गणेश जी ने मझे कुछ वर मांगने को कहा है, लेकिन बेटे का लोभ बेटे ने मांगा और बहू का लोभ बहू ने मांगा, लेकिन उन दोनों ने यह नहीं कहा- 'मां तुम अंधी हो अपनी आंखे मांगना।' तब उस बूढे ने बुढिया को सुझाव दिया कि 'माई, तुम मांगना- मैं मेरे पोते को सोने के कटोरे में दूध पीता देखना चाहती हूं।' इतना कहकर बूढ़ा अन्तर्धान हो गया। जब बुढ़िया गणेश जी के पास गई तो गणेशजी बोले 'मांग माई क्या मांगती है? वह बोली 'मैं अपने पोते को सोने के कटोरे में दूध पीते देखना चाहती हूं। अमर सुहाग और मोक्ष
चाहती हूं।' 'तथास्तु' कहते हुए गणेश जी ने उसे मुंह मांगा वरदान दे दिया।
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