तिल चौथ या सकट चौथ कथा | NIRALE RANG

तिल चौथ कथा


सकट चौथ का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन गणेश जी और चन्द्रमा की पूजा की जाती है। कहीं-कहीं इसे तिल चौथ भी कहा जाता है।

कथा- एक साहूकार दम्पति थे जिनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के यहां अग्नि लेने गई। वहां उसने देखा कि पड़ोसन एवं कुछ अन्य महिलाएं पूजन कर, कथा सुन रही हैं। यह देख उसने पूछा- 'आप सब किसकी पूजा एवं व्रत कर रही हों तथा इस व्रत के करने से क्या फल मिलता है।'

पड़ोसन ने साहूकार की पत्नी को बताया कि यह चतुर्थी की पूजा है, इस दिन व्रत करने तथा कथा कहने-सुनने से बिछड़े हुए मिल जाते हैं, सुख समृद्धि एवं संतान की प्राप्ति होती है। यह सुन साहूकारनी ने वहीं संकल्प किया कि 'यदि मेरे कोई संतान हो जाएगी, तो मैं भी सवा सेर का तिलकुटा चढ़ाऊंगी।' सकट चौथ माता ने उसकी मनोकामना पूरी की और नौ माह पश्चात् उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, परन्तु वह तिलकुटा चढ़ाना भूल गई। इसके बाद उसके छह बेटे और हुए, फिर भी उसने तिलकुटा चढ़ाने की याद नहीं आई। सातों बेटे बड़े होने लगे।

उसने बड़े बेटे के विवाह के लिए फिर से मन्नत मांगते हुए कहा- 'यदि मेरे बेटे का विवाह हो जाए, तो सवा मन का तिलकुटा चढ़ाऊंगी।'

विवाह की सभी तैयारियां होने लगी. फिर भी साहकारनी तिलकटा चढ़ाना भूल गई। जब उसका बेटा फेरों में बैठ गया तो चौथ विनायक ने सोचा कि यह साहूकारनी हर बार तिलकुटा बोल तो देती है लेकिन चढ़ाती एक भी बार नहीं। अब तो इसके बेटे का विवाह भी सम्पन्न होने जा रहा है, अगर हम इसे चमत्कार नहीं दिखाएंगे, तो हमें
कौन मानेगा?' इतना कह चौथ माता ने दूल्हे को फेरों में से उठाकर गांव के बाहर पीपल के वृक्ष पर बैठा दिया।

दूल्हे के अचानक इस प्रकार फेरों में से गायब हो जाने से उपस्थित लोगों में हाहाकार मच गया। सभी तरफ दूल्हे को ढूंढा गया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला और दिन बीतते गए। जब गणगौर पूजने के लिए गांव के बाहर से दब
लेने जाती तो वह लड़की भी उनके साथ जाती जिसका पति फैरों में से गायब हो गया था। सब सहेलियां जब राह में एक पीपल के समीप से गुजरती तो पीपल पर बैठा उसका दूल्हा उसे देख कर कहता 'आए म्हारी अद ब्याही हुई। यह आवाज सुन कर वह लड़की चिन्तित होती। इसी चिन्ता से वह दुबली होती जा रही थी। तब मां ने दूबली होने का कारण पूछा, तो बेटी ने बताया कि- 'मैं जब भी गणगौर पूजने के लिए दूब लेने जाती हूं तो पीपल में से एक आदमी बोलता है।

'आए म्हारी अद ब्याही हुई।' उसने दूल्हे के कपड़े पहन रखे हैं तथा हाथों में मेहन्दी लगा रखी है। सिर पर सेहरा बांध रखा है।' बेटी की बात सुनकर मां उस वृक्ष को देखने आई। मां ने देखा तो वह तो उसी का दामाद है, जो फेरों पर से अचानक गायब हो गया था। उसने अपने दामद से वहां बैठने का कारण पूछा तो दूल्हे ने कहा- 'मैं चौथ के यहां गिरवी हं। मेरी मां ने तिलकुटा बोला था और चढ़ाया नहीं। इस कारण चौथ नाराज है और उन्होंने मुझे यहां
बैठा रखा है।'

दामाद की बातें सुनकर सास उसी समय उसकी मां के पास गई और सारी बातें उन्हें बताई? साहकारनी ने उसी दिन ढाई मन का तिलकुटा चढ़ाकर चौथ माता के भोग लगाया और पूजा की। इससे चौथ माता प्रसन्न हुई। उन्होंने गिरवी रखे बेटे को छोड़ दिया और विवाह सम्पन्न हुआ। इसके पश्चात साहकारनी हर चौथ का व्रत करने लगी।


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