भैया-दूज कथा 2022 | nirale rang

 भैया-दूज कथा 2020

यह त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन सूर्य-पुत्री यमुनाजी ने अपने भाई यमराज को भोजन कराया था। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है।

था- पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा के दो संतानें थीं। उनमें पुत्र  का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगीं। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा [छाया] का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी 'यमपुरी' बसाई। 'यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दण्ड देते देख दुःखी होती. इसलिए वह गो लोक में चली गई।

समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली, फिर यम स्वयं गो लोक गए, जहां यमुना जी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुईं। यमुना ने भाई का स्वागत किया और बढिया भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा, तब यमुना ने वर मांगा कि- 'हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।' वर सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन ही मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिन्तित देख, बहन बोली- 'भैया आप चिन्ता नहीं करें- मुझे यह वरदान दें कि- 'जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन .. करे तथा यमुना नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करे, वे यमपुरी नहीं जाए।' यमराज, ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई मिलने के इस भाई -बहन के पर्व को अब भैया-दूज के रूप में मनाया जाता है।
 
 

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