विशेषता महाशिवरात्रि की -Brahmakumaris

विशेषता महाशिवरात्रि 2020



 यूँ तो हर 24 घंटे में एक बार रात्रि आ ही जाती है परंतु भारतीय जनजीवन में तीन रात्रियों का विशेष महत्व है, वे हैं- शिवरात्रि, नवरात्रि और दीपावली। यहाँ हम विशेष पर इस बात पर विचार करेंगे कि वर्ष भर की अन्य तीन सौ बासठ या त्रेसठ रात्रियों में और शिवरात्रि में ऐसा क्या विशेष अंतर है जिस कारण उन रात्रियों का महत्व न होकर शिवरात्रि को एक त्योहार के रूप में अथवा एक पवित्र रात्रि के रूप में और वरदान देने वाली रात्रि के तौर पर मनाया जाता है। हम देखते भी हैं कि शिवरात्रि के अवसर पर भक्तजन कोशिश करते हैं कि (1) वे अपनी सुध-बुध को न भूलें अर्थात् वे इसमें सचेत (Conscious) रहते हैं कि वे विश्वनाथ बाबा, एकलिंग महाराज अथवा शिवबाबा के बच्चे आत्मा हैं।
(2)इस चेतना द्वारा तथा उपवास द्वारा वे आलस्य, निद्रा तथा तमोगुण से दूर रहने का यत्न करते हैं ताकि उनमें सतोगुण का उद्रेक हो।
 (3) इस प्रकार के पुरुषार्थ द्वारा वे भविष्य के लिए कमाई करते हैं अथवा वरदानों को प्राप्त करने का यत्न करते हैं
 (4) वे भोगों की इच्छाओं को शांत करते हैं तथा शिवरात्रि पर
(5) विकर्मों से बचकर रहते हैं।

वास्तविक शिवरात्रि की धुंधली यादगार दूसरा प्रश्न यह भी है कि वर्ष में केवल एक ही बार जो शिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है, क्या यही वास्तविक शिवरात्रि है? यदि हाँ, तो इसका अर्थ यह होगा कि हम वर्ष की बाकी रात्रियों में भले ही तमोगुण के वशीभूत हुए रहें और शिवबाबा को भूले रहें तथा विकर्म करते रहें और शिवरात्रि आने पर एक बार निर्जला उपवास, जागरण तथा शिव-स्तुति कर लिया करें। यह तो वही बात हुई कि नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।

 स्पष्ट है कि हर वर्ष भक्तगण जो शिवरात्रि मनाते हैं, यह वास्तविक शिवरात्रि की धुंधली-सी यादगार मात्र है।
उत्सव के लिए 'रात्रि' शब्द क्यों? एक अन्य प्रश्न यह भी उठता है कि
शिव परमात्मा के कल्याण के कार्य के स्मरणोत्सव को 'रात्रि' शब्द से क्यों युक्त किया गया? 
क्या परमात्मा ने किसी रात्रि को जन्म लिया था? 
क्या उसने 'रात्रि' को यह कार्य किया था? क्या 'रात्रि' ही में पवित्र रहने अथवा अपने कल्याण की बात सोचने की ओर ध्यान खिंचवाया था?

इस विषय में स्मरण रखने की बात यह है कि यहाँ रात्रि शब्द चौबीस घंटे में एक बार आने वाली 'रात्रि' का
वाचक नहीं है क्योंकि आठ-दस घंटे में ही विश्व के कल्याण का कार्य नहीं हो जाता। पुनश्च, यदि किसी का जन्म रात्रि को भी हुआ हो तो उस कारण से उसके जन्म की तिथि को 'जन्म-रात्रि' नहीं कहा जाता बल्कि 'जन्म-दिन' ही कहा जाता है। अत: ज्ञात रहे कि यहाँ ‘रात्रि' शब्द अज्ञानान्धकार का, तमोगुण एवं आलस्य का, स्वरूप-विस्मृति का तथा पापाचार का प्रतीक है। यहाँ 'रात्रि' शब्द उस 'महारात्रि' का वाचक है जबकि सारी सृष्टि में धर्म- भ्रष्टता, कर्म-भ्रष्टता और विकार प्रधान हो जाते हैं।

 ऐसा समय कलियुग का अंतिम चरण ही होता है। चूंकि परमात्मा शिव ऐसे ही अवसर पर अवतरित होकर कल्याण की ओर सभी का ध्यान खिंचवाते तथा विश्व का कल्याण करते हैं इसलिए इसे 'शिवरात्रि' कहा जाता है। यूँ द्वापरयुग और कलियुग, धर्म की कलाएँ क्षीण होने के कारण ‘ब्रह्मा की रात्रि' तो है ही परंतु इसमें से भी इसके जिस भाग में शिव स्वयं आकर विश्व-कल्याण का कार्य करते हैं, उसका नाम 'शिवरात्रि' होता है। हम हर वर्ष जो त्योहार मनाते हैं, वह तो उस शिवरात्रि का स्मरणोत्सव मात्र है।

शिव का अवतरण- कब और कैसे?
मंदिरों में शिवलिंग' नाम से शिव स्पष्ट है कि शिव अशरीरी हैं। फिर प्रश्न उठता है कि उनका जन्म किस तन में और कैसे होता है? यह तो सभी जानते ही हैं कि परमपिता परमात्मा जन्म-मरण से न्यारे हैं और कर्मातीत हैं। अत: वे कोई कर्म-जन्य शरीर लेकर किसी के पास शिशु रूप में तो पालना ले नहीं सकते, वे तो सभी के माता-पिता एवं पालनहार हैं। इसलिए वे कलियुग के अंतिम चरण में एक साधारण मनुष्यके तन में दिव्य प्रवेश करते हैं जिसे 'परकाया प्रवेश' भी कहा जाता है।
        उसके मुखारविन्द द्वारा वे ईश्वरीय ज्ञान और योग की शिक्षा देकर जन- मन को सतोप्रधान बनाकर सतयुग की पुनः स्थापना करते अर्थात् विश्व का कल्याण करते हैं। उसी मानव को वे प्रजापिता ब्रह्मा नाम देते हैं। उसी द्वारा उन्होंने पाँच हजार वर्ष पहले ज्ञान-गंगा बहाकर भारत को पावन किया था। जानने योग्य महत्वपूर्ण रहस्य इस विषय में एक और बात जानना जरूरी है। वह यह कि मनुष्यात्मायें तो शरीर धारण करने के बाद संसार में जीवन व्यतीत करतीं, कार्य करती और अंत में शरीर छोड़कर दूसरा शरीर लेती हैं। अत: हम जिस, किसी भी मनुष्य का जन्मदिन मनाते हैं, उसने अपने कर्मों के अनुसार भिन्न नाम- रूप से दूसरा शरीर अवश्य ही लिया होगा।

      यदि कोई कहे कि फलां जानने पर आप इस निष्कर्ष पर सहज ही पहुँच सकेंगे कि अपने उस अनादि एवं अविनाशी करुणामय गुण के अनुरूप तथा अपने उस ईश्वरीय वचन के अनुसार वे वर्तमान कलियुग के अंत (वर्तमान धर्मग्लानि) के समय भी अपना ईश्वरीय कर्त्तव्य कर रहे हैं। वे अब पुनः प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ईश्वरीय ज्ञान, योग, दिव्य गुण, पवित्रता, शान्ति, आनन्द, शक्ति रूप अनमोल वरदान दे रहे हैं। जो इस रात्रि में आध्यात्मिक अर्थ में जागेगा, वही इन वरदानों को पायेगा। जो अब ब्रह्मचर्य रूप व्रत का पालन करेगा वही उन द्वारा मुक्ति और जीवन्मुक्ति रूपी कल्याण का भागी बनेगा।

आप देखेंगे कि अन्य किसी महात्मा के जन्मदिवस पर लोग न तो निर्जल उपवास करते हैं, न ही रात्रि भर जागते हैं, न ही वे उसकी प्रतिमा का पूजन करते हैं और न ही उसकी प्रतिमा गोल-मोल आकृति की होती है।एक शिव ही के जन्मोत्सव की यह विशेषता है। शिव की प्रतिमा ही शारीरिक आकृति से रहित है क्योंकि शिव अशरीरी परमपिता का नाम है और यह प्रतिमा उस ज्योतिबिन्दु ही की प्रतिमा है जो सारे विश्व से अज्ञान-
रात्रि का अंत करते हैं तथा सभी आत्माओं को जगाते हैं।
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