महाशिवरात्रि 2022
: शिवरात्रि कथा -शिव रात्रि से शिकारी
कैसे बना अहिंसक
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लोक कथाओं के अनुरूप एक गरीब बहेलिया अपने परिवार का लालन-पालन शिकार करके किया करता था। एक बार समय पर कर्ज न दे सकने के कारण साह कर्ज न दे सकने के कारण साहूकार ने उसे एक शिव मठ में बंद उस दिन फाल्गुन-कृष्ण त्रयोदशी थी, इसलिए मंदिर में धर्म-व्रत सम्बन्धी कथा वार्ता हो रही थी। बहेलिये ने बड़े ध्यान से चतुर्दशी के दिन होने वाले महाशिवरात्रि वत की कथा सुनी, उसी दिन साहूकार ने उसे छोड़ दिया और अगले दिन कर्ज अदा करने का वचन बहेलिये से ले लिया।
चतुर्दशी को प्रातःकाल बहेलिया शिकार के लिए एक गहन वन में गया, परन्तु उस दिन कोई पशु उसे नहीं मिला। दिन भर की भूख-प्यास से व्याकुल बहेलिया ने तब एक जलाशय के किनारे रात बिताने का निश्चय किया। जलाशय के किनारे ही एक बेल वृक्ष और उसी के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। बहेलिया उस
पेड़ पर चढ़कर बैठ गया और अपनी सुविधायोग्य स्थान बनाने के लिए बेल के पत्ते तोड़-तोड़कर नीचे डालने
लगा। नीचे गिरे हुए बिल्व पत्रों से शिवलिंग आच्छादित हो गया। बहेलिया दिन भर भूखा रहने के कारण एक प्रकार से शिवरात्रि का व्रत कर चुका था और बेलपत्र भी चढ़ा चुका था।
एक पहर रात बीतने के बाद एक गर्भवती हिरणी जलाशय के किनारे आई। उसे देखते ही बहेलिये ने हिरणी को लक्ष्य करके धनुष पर बाण चढाया। हिरणी भयभीत हो बहेलिये से विनती करते हुए बोली- 'हे व्याध! मैं गर्भिणी हं। अतः मुझे अभी न मारो, प्रसव पश्चात् मैं स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। यदि मैं तुरन्त तुम्हारे पास न आऊं तो कृतघ्न को जो पाप लगता है वह मुझको लगे।' हिरणी का इतना कहना था कि बहेलिये ने धनुष पर से बाण उतार लिया और हिरणी को वापस आने की प्रतिज्ञा ले छोड़ दिया। हिरणी के चले जाने पर बहेलिया शिव-शिव करते हुए किसी अन्य जानवर के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
रात्रि की दूसरी बेला में एक अन्य मगी उसी स्थान पर आई। बहेलिये ने जैसे ही उस पर निशाना साधा तो उसने निवदेन किया- 'मुझे अभी अपने पति से मिलने जाना है। बाद में मैं | स्वयं तुम्हारे पास आऊंगी। बहेलिये को उस पर दया आ गई। उसने उसे भी जाने दिया।'
रात्रि की तृतीय बेला में तीसरी हिरणी अपने छोटे से छौने को लेकर जलाशय पर पानी पीने आई। बहेलिये ने उसे देख धनुष वाण उठाया, तब हिरणी अत्यन्त विनम्र भाव से बोली- 'इस छौने को हिरण के संरक्षण में छोड़कर आऊं, तब मुझे मार देना।'
बहेलिया उसकी करुण पुकार से प्रभावित हुआ और उसे छोड़ दिया। हिरणी और उसकी छौने कुलांचे भरते हुए वहां से चले गए। रात्रि के तीसरे पहर में बहेलिये ने कुछ देर और बेल पत्र तोड़कर नीचे डाले, जो शिवजी के शीश पर चढ़ गए। इसके बाद वह शिव-शिव कहता हुआ किसी अन्य जानवर के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
प्रातः काल से पूर्व एक बलिष्ठ मृग उस जलाशय पर आया। बहेलिये ने उस पर निशाना साधा। यह देख हिरण बडी सरलता से बोला- 'हे व्याधराज! यदि आपने उन तीनों हिरणियों को मारा है, तो आप मुझे भी शीघ्र मार डालिए, जिससे उन मृत हिरणियों का दुःख मुझे न हो!' बहेलिये ने हिरण की प्रेम एवं पांडित्यपूर्ण वाणी सुनकर रात की सारी घटनाएं उसे सुना दी, बहेलिये की बातें सुनकर हिरण पुनः बोला- 'तीनों हिरणियां मेरी भार्या थी और मुझे खोजती फिर रही थी। यदि आप मुझको मार डालेंगे, तो वे जिस उद्देश्य से आपसे प्रतिज्ञा करके गई हैं, वह विफल हो जाएगी? शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से बहेलिये का हृदय परिवर्तित गया। बहेलिये ने निश्चय किया कि हिरण के परिवार के लौटने पर भी वह उन्हें नहीं मारेंगा ।
शिव कृपा से वह अहिंसा का पुजारी बन गया। इस प्रकार अहिंसा की चरम सीमा पर पहुँचे हुए बहेलिये को देखकर शिवजी प्रसन्न हुए। उन्होंने दो पुष्प विमान भी भेजकर बहेलिये तथा मृग परिवार को शिव लोक का अधिकारी बनाया।
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